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अलिफ लैला की प्रेम कहानी-46

फकीरों ने मजदूर को देखकर कहा कि यह तो अरब का मुसलमान मालूम होता है। अरब के लोग धर्म के बड़े पक्के होते हैं किंतु यह तो धर्म-विरुद्ध मदिरा पान कर रहा है। मजदूर यह सुनकर बड़ा क्रुद्ध हुआ और बोला, 'तुम लोग कौन बड़े धर्माचारी हो। तुम लोगों ने दाढ़ी-मूँछें मुड़ाकर इस्लाम के नियमों का उल्लंघन नहीं किया? तुम्हें मेरे व्यवहार पर आपत्ति करने और मुझे नसीहत देने का क्या अधिकार है?' स्त्रियों ने कहा कि तुम लोग यह बेकार की बहस छोड़ो और रंग में भंग न करो; लो खाओ-पिओ। फकीर लोग नशे में आए तो बोले, यहाँ कोई बाजा हो तो हम लोग कुछ गाएँ-बजाएँ। साफी ने उन्हें वाद्य ला कर दिए और वे बजाने लगे और वाद्यों के सुरों से सुर मिलाकर गाना शुरू किया। वे लोग इस गाने-बजाने के दरम्यान हँसी-ठट्ठा भी करते और ऊँचे स्वर में वाह- वाह भी करते। इस सबसे बड़ा शोर होने लगा और सारा भवन गूँजने लगा। इसी बीच उन्होंने सुना कि दरवाजे पर फिर कोई ताली बजा रहा है। साफी सदा की भाँति दौड़कर गई कि देखें, अब कौन दरवाजे पर आया है।

 

शहरजाद ने शहरयार से कहा कि इस जगह कहानी रोक कर मैं आप को यह बताना चाहती हूँ कि इस बार ताली बजाने वाला स्वयं खलीफा हारूँ रशीद था। खलीफा का यह नियम था कि अक्सर रात को वेष बदलकर शहर में निकलता था कि प्रजा का हाल खुद अपनी आँखों से देखे। उस रात को वह अपने महामंत्री जाफर और जासूसों के सरदार मसरूर के साथ बगदाद की गलियों में घूम रहा था। वे तीनों व्यापारियों जैसे वस्त्र पहने हुए थे। जब वे लोग उन स्त्रियों के मकान के पास से गुजरे तो उन्होंने हँसी की ध्वनि और गाने-बजाने का स्वर सुना। खलीफा ने कहा कि घर का दरवाजा खुलवाओ, मैं देखूँ तो कि यहाँ क्या हो रहा है। जाफर ने कहा कि यहाँ कुछ स्त्रियाँ शराब पीकर हँसी- दिल्लगी कर रही हैं, गा-बजा रही हैं, आपका अंदर जाना शोभनीय नहीं है। यह भी हो सकता है कि वे अपने राग-रंग में विघ्न पड़ते देखकर नशे की हालत में आप का कुछ अपमान कर बैठें। किंतु खलीफा ने उसकी सलाह न मानी और आदेश दिया कि तुम जाकर दरवाजा खुलवाओ।

 

अतएव जाफर ने दरवाजा खुलवाया। साफी ने दरवाजा खोला तो जाफर उसके रूप को देखता रह गया, फिर उसने जल्दी से एक कहानी गढी। उसने कहा, 'सुंदरी, हम तीनों व्यापारी मोसिल नगर के निवासी हैं। हम व्यापार की वस्तुएँ लेकर यहाँ 

 

आए हैं और एक सराय में ठहरे हैं। आज की रात को यहाँ के एक व्यापारी ने हमें दावत दी थी। हम उसके घर गए। उसने हमें बड़ा स्वादिष्ट भोजन कराया और उत्तम मदिरा पीने को दी। हम लोग नशे में आ गए तो उसने नृत्यांगनाओं को बुलाकर नाचने की आज्ञा दी। इस राग-रंग में काफी समय हो गया और नशे की हँसी और नाच-गाने से बाहर काफी आवाज जाने लगी। उसी समय संयोगवश शहर का कोतवाल गश्त लेकर उधर से निकला और उसने उस घर पर छापा मार दिया। दरवाजा खुलवा कर उसने सब उलट-पलटकर दिया और कई आदमियों को गिरफ्तार कर लिया। हम लोग जान बचाकर एक दीवार से बाहर कूद गए।'

 

यह कहकर जाफर ने कहा, 'हम लोग इस शहर में किसी को नहीं जानते, न यहाँ के मार्ग पहचानते हैं। हमें डर लग रहा है कि हम इधर-उधर भटकते हुए सराय पर कैसे पहुँचेंगे। फिर संभव है सराय का दरवाजा बंद हो गया हो और हम रात भर गलियों में भटकते रहें। यह भी संभव है कि वही कोतवाल गश्त लगाता हुआ आ निकले और हम लोगों को बंद कर दे। हमारी दशा बड़ी दयनीय है। सुंदरी, तुम दया करके अनुमति दो तो हम रात भर के लिए तुम्हारे मकान में किसी जगह पड़े रहें। अगर तुम हमें अपनी संगति के योग्य समझो तो हमें अपने गाने-बजाने में शामिल कर लो। हम लोग यह तो समझ गए हैं कि तुम लोग गाने-बजाने में अति निपुण हो। हमें भी संगीत में रुचि है और हम भी अपनी कला से तुम्हारे आमोद-प्रमोद में योग दे सकते हैं।'

 

साफी ने कहा, मैं इस घर की मालकिन नहीं हूँ; तुम लोग जरा देर यहीं ठहरो, मैं मालकिन से तुम्हारी बात करती हूँ; अगर उसने अनुमति दे दी तो फिर कोई दिक्कत नहीं रहेगी और तुम लोग आराम से यहाँ रात बिता सकोगे। यह कह कर साफी अंदर गई और अपनी बहनों से नए व्यापारियों की दशा और उनकी प्रार्थना की बात की। उन दोनों ने आपस में और साफी के साथ मंत्रणा की और साफी से कहा कि उन्हें भी अंदर ले आओ।

 

अतएव साफी वहाँ जाकर खलीफा, जाफर और मसरूर को अंदर ले आई। तीनों ने बड़ी शिष्टता और सम्मान से स्त्रियों और फकीरों को प्रणाम किया। उन सब ने उन्हें व्यापारी समझ कर उनके अभिवादन का यथायोग्य उत्तर दिया। जुबैदा ने, जो तीनों बहनों में सब से बड़ी और सब से बुद्धिमान थी, उनसे उनकी कुशल-क्षेम पूछी और कहा कि हम लोग जो कुछ कहें उसका तुम लोग बुरा न मानना। जाफर ने कहा, तुम सुंदरियों के मुँह से ऐसी कौन-सी बात निकल सकती है जिसका किसी को भी बुरा लगे? जुबैदा ने कहा, 'मुझे यह कहना है कि तुम जहाँ तक हो सके चुप रहना और जिस बात का तुम से सीधा संबंध न हो उसके बारे में कोई प्रश्न न करना। अगर तुमने ऐसा न किया तो हम तुमसे क्रुद्ध हो जाएँगे और इसका फल तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।' मंत्री ने कहा कि अगर तुम्हारा यही आदेश है तो हम ऐसा ही करेंगे और किसी बात के बारे में प्रश्न नहीं करेंगे। यह वादा लेकर जुबैदा ने उन सब के आगे खाद्य सामग्री रखी और मदिरा पिलाई।

 

 

 

जब मंत्री जुबैदा से बातें कर रहा था उस समय खलीफा आश्चर्यचकित होकर उन स्त्रियों के सौंदर्य और तीक्ष्ण बुद्धि को देख रहा था। उसे इस बात से भी बहुत आश्चर्य हो रहा था कि तीनों फकीर दाहिनी आँख से क्यों काने हैं। उसकी उत्कट इच्छा थी कि वह फकीरों से इस बात का रहस्य पूछे किंतु उसके दोनों साथियों ने इशारों ही में उसे ऐसा न करने के लिए कहा। मकान के अंदर की सारी रुपहली और सुनहरी सजावट को देखकर वह मन ही मन कह रहा था कि यह चीजें जादू ही की हो सकती हैं, वास्तविक नहीं हो सकतीं। इतने में एक फकीर ने उठकर अपने देश के ढंग पर नाचना शुरू कर दिया। स्त्रियों को वह नाच पसंद आया और सबने उसकी नृत्य कला की प्रशंसा की।

 

जब फकीरों का नाच हो चुका तो जुबैदा अपने स्थान से उठी और अमीना का हाथ पकड़ कर बोली, 'बहन, यह तो तुम जानती ही हो कि यहाँ पर उपस्थित सब लोग हमारे अधीन हैं और इनकी उपस्थिति हमें हमारे रोज के काम से नहीं रोक सकती।' अमीना ने उसका अभिप्राय समझ कर उस जगह की सफाई शुरू कर दी। उसने भोजन के पात्र और मदिरा की सुराहियाँ और प्याले उठाकर बावर्चीखाने

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